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    विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 60

    ["विषय और वासना जैसे दूसरों में हैं वैसे ही मुझमें हैं . इस भांति स्वीकार करके उन्हें रूपांतरित होने दो ."]


    धार्मिक व्यक्ति जो कुछ भी दूसरों में देखता है उसे अपने भीतर भी देखता है . अगर हिंसा है तो वह सोचने लगता है कि यह हिंसा मुझमें है या नहीं . अगर लोभ है , अगर उसे कहीं लोभ दिखाई पड़ता है , तो उसका पहला खयाल यह होता है कि यह लोभ मुझमें है या नहीं . और जितना ही खोजता है वह पाता है कि मैं ही सब बुराई का स्रोत हूं . तब फिर प्रश्न यह नहीं है कि संसार को कैसे बदला जाए ; तब फिर प्रश्न यह है कि अपने को कैसे बदला जाए . और बदलाहट उसी क्षण होने लगती है जब तुम एक मापदंड अपनाते हो . उसे अपनाते ही तुम बदलने लगे .


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