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    विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 75

    [ "जागते हुए , सोते हुए , अपने को प्रकाश समझो ." ]


    जागते समय-- चलते हुए , खाते हुए , काम करते हुए-- अपने को प्रकाश रूपमें स्मरण रखो .मानो तुम्हारे हृदय में एक ज्योति जल रही है और तुम्हारा शरीर उस ज्योति का प्रभामंडल भर है . कल्पना करो कि तुम्हारे हृदय में एक लपट जल रही है ; और तुम्हा शरीर उस लपट के चारों ओर प्रभामंडल के अतिरिक्त कुछ नहीं है ; तुम्हारा शरीर उस लपट के चारों ओर फैला प्रकाश है . इस कल्पना को , इस भाव को अपने मन और चेतना की गहराई में उतरने दो . इसे आत्मसात करो .
         थोड़ा समय लगेगा . लेकिन यदि तम यह स्मरण करते रहे , कल्पना करते रहे , तो धीरे-धीरे तुम इसे पूरे दिन स्मरण रखने में समर्थ हो जाओगे . जागते हुए , सड़क पर चलते हुए तुम एक चलती-फिरती ज्योति हो जाओगे . शुरू-शुरू में किसी दूसरे को इसका बोध नहीं होगा ; लेकिन अगर तुमने यह स्मरण जारी रखा तो तीन महीनों में दूसरों को भी इसका बोध होने लगेगा . और जब दूसरों को आभास होने लगे तो तुम निश्चिंत हो सकते हो . किसी से कहना नहीं है , सिर्फ ज्योति का भाव करना है कि तुम्हारा शरीर उसके चारों तरफ फैला प्रभामंडल है . यह स्थूल शरीर नहीं है , विद्युत-शरीर है , प्रकाश-शरीर है . अगर तुम धैर्यपूर्वक लगे रहे तो तीन महीनों में , करीब-करीब तीन महीनों में दूसरों को बोध होने लगेगा कि तुम्हें कुछ घटित हो रहा है . वे तुम्हारे चारों ओर एक सूक्ष्म प्रकाश महसूस करेंगे . जब तुम निकट जाओगे , उन्हें एक अलग तरह की ऊष्मा महसूस होगी . तुम यदि उन्हें स्पर्श करोगे तो उन्हें ऊष्ण स्पर्श का अनुभव होगा . उन्हें पता चल जाएगा कि तुम्हें कुछ अद्भुत घट रहा है . पर किसी से कहो मत . और जब दूसरों को पता चलने लगे तो तुम आश्वस्त हो सकते हो . और तब तुम दूसरे चरण में प्रवेश कर सकते हो ; उसके पहले नहीं .
        दूसरे चरण में इस विधि को स्वप्नावस्था में ले चलना है . अब तुम स्वप्न जगत में इसका प्रयोग शुरू कर सकते हो . यह अब यथार्थ है , अब यह कल्पना ही नहीं है . कल्पना के द्वारा तुमने सत्य को उघाड़ लिया है . यही सत्य है . सब कुछ प्रकाश से बना है ; हालांकि तुमें इसका बोध नहीं है . क्योंकि पदार्थ का कण-कण प्रकाश है . वैज्ञानिक कहते है कि पदार्थ इलेक्ट्रान से बना है . यह वही बात है . प्रकाश ही सबका स्रोत है . तुम भी घनीभूत प्रकाश हो ; कल्पना के जरिये तुम सिर्फ सत्य को फिर से उघाड़ रहे हो , प्रकट कर रहे हो . इस सत्य को आत्मसात करो . और जब तुम उससे आपूर हो जाओ तो उसे दूसरे चरण में , स्वप्न में ले जा सकते हो . उसके पहले नहीं .
         तो नींद में उतरते हुए ज्योति को स्मरण करते रहो , देखते रहो , भाव करते रहो कि मैं प्रकाश हूं . और इसी स्मरण के साथ नींद में उतर जाओ . और नींद में भी यह स्मरण जारी रहता है . आरंभ में कुछ ही स्वप्न ऐसे होंगे जिनमें तुम्हें भाव होगा कि तुम्हाए भीतर ज्योति है , कि तुम प्रकाश हो . पर धीरे-धीरे स्वप्न में भी तुम्हें यह भाव बना रहने लगेगा . और जब यह भाव स्वप्न में प्रवेश कर जाएगा , सपने विलीन होने लगेंगे .


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