• Recent

    विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 85

     [ " ना-कुछ का विचार करने से सीमित आत्मा असीम हो जाती है ." ]


    अगर तुम सोच-विचार नहीं कर रहे हो तो तुम असीम हो . विचार तुम्हें सीमा देता है . और सीमाएं अनेक तरह की हैं . तुम हिंदू हो , यह सीमा है . हिंदू होना किसी विचार से , किसी व्यवस्था से , किसी ढंग-ढांचे से बंधा होना है . तुम ईसाई हो , यह भी एक सीमा है . धार्मिक व्यक्ति कभी भी हिंदू और ईसाई नहीं हो सकता है . और अगर कोई आदमी हिंदू या ईसाई है तो वह धार्मिक नहीं है . असंभव है . क्योंकि ये सब विचार हैं . धार्मिक आदमी का अर्थ है कि वह विचार से नहीं बंधा है . वह किसी विचार से सीमित नहीं है ; वह किसी व्यवस्था से , किसी ढंग-ढांचे से नहीं बंधा है , वह मन की सीमा में नहीं जीता है--वह असीम में जीता है . 


    Page - प्रस्तावना 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25
    26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50
    51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75
    76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100
    101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112