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    विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 83

    [ " जैसे विषयीगत रूप से अक्षर शब्दों में और शब्द वाक्यों में जाकर मिलते हैं और विषयगत रूप से वर्तुल चक्रों में और चक्र मूल तत्व में जाकर मिलते हैं , वैसे ही अंततः इन्हें भी हमारे अस्तित्व में आकर मिलते हुए पाओ ." ]


    इस विधि को छोटे-छोटे प्रयोगों स शुरू करो . किसी वृक्ष के नीचे बैठ जाओ . हवा बह रही है और वृक्ष के पत्तों में सरसराहट की आवाज हो रही है . हवा तुम्हें छूती है , तुम्हारे चारों तरफ डोलती है और गुजर जाती है . लेकिन तुम उसे ऐसे ही मत गुजर जाने दो ; उसे अपने भीतर प्रवेश करने दो और अपने में होकर गुजरने दो .आंखें बंद कर लो और जैसे हवा वृक्ष से होकर गुजरे और पत्तों में सरसराहट हो , तुम भाव करो कि मैं भी वृक्ष के समान खुला हुआ हूँ और हवा मुझमें भी होकर बह रही है-- मेरे आस-पास से नहीं , ठीक मेरे भीतर से होकर बह रही है . वृक्ष की सरसराहट तुम्हें अपने भीतर अनुभव होगी और तुम्हें लगेगा मेरे शरीर के रंध्र-रंध्र से हवा गुजर रही है . और हवा वस्तुतः तुमसे होकर गुजर रही है . यह कल्पना ही नहीं है , यह तथ्य है . तुम भूल गए हो . तुम नाक से ही सांस नहीं लेते , तुम पूरे शरीर से सांस लेते हो , एक-एक रंध्र से सांस लेते हो , लाखों छिद्रों से सांस लेते हो . अगर तुम्हारे शरीर के सभी छिद्र बंदकर दिए जाएं , उन पर रंग पोत दिया जाए और तुम्हें सिर्फ नाक से सांस लेने दिया जाए तो तुम तीन घंटे के अंदर मर जाओगे . सिर्फ नाक से सांस लेकर तुम जीवित नहीं रह सकते हो . तुम्हारे शरीर का प्रत्येक कोष्ठ जीवंत है और प्रत्येक कोष्ठ सांस लेता है . हवा सच में तुम्हारे शरीर से होकर गुजरती है , लेकिन उसके साथ तुम्हारा संपर्क नहीं रहा है .
          तो किसी झाड़ के नीचे बैठो और अनुभव करो . आरंभ में यह कल्पना मालूम पड़ेगी , लेकिन जल्दी ही कल्पना यथार्थ बन जाएगी . यह यथार्थ ही है कि हवा तुमसे होकर गुजर रही है . और फिर उगते हुए सूरज के नीचे बैठो और अनुभव करो कि सूरज की किरणें न केवल मुझे छू रही हैं , बल्कि मुझमें प्रवेश कर रही हैं और मुझसे होकर गुजर रही हैं . इस तरह तुम खुल जाओगे , ग्रहणशील हो जाओगे .  


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