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    विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 98

    [ " किसी सरल मुद्रा में दोनों काँखों के मध्य-क्षेत्र (वक्षस्थल) में धीरे-धीरे शान्ति व्याप्त होने दो . " ]


    बस अपनी आंखें बंद कर लो और सारे शरीर को अनुभव करो . पैरों से शुरू करो , महसूस करो कि उनमें कहीं तनाव तो नहीं है . यदि तुम्हें लगे कि कोई तनाव है तो एक काम करो : उसे और तनाव से भर दो . यदि तुम्हें लगे कि दाहिने पांव में तनाव है तो उस तनाव को जितना सघन कर सको , उतना सघन करो . उसे एक शिखर तक ले आओ , फिर अचानक उसे ढीला छोड़ दो , ताकि तुम यह महसूस कर सको कि कैसे वहां विश्राम उतर रहा है . फिर पूरे शरीर में देखते जाओ कि कहां-कहां तनाव है उसे और गहराओ , क्योंकि तनाव सघन हो तो विश्राम में जाना सरल है . आधे-अधूरे तो यह बड़ा कठिन है , क्योंकि तुम उसे महसूस ही नहीं कर सकते . एक अति से दूसरी अति पर जाना बहुत सरल है , क्योंकि एक अति स्वयं ही दूसरी अति पर जाने के लिए परिस्थिति पैदा कर देती है .
           तो चेहरे पर अगर तुम कोई तनाव महसूस करो तो चेहरे की मांश-पेशियों को जितना खींच सको खींचों , तनाव को एक शिखर पर पहुंचा दो . उसे ऐसे बिदु तक ले जाओ जहां और तनाव संभव ही न हो , फिर अचानक ढीला छोड़ दो . इस तरह से देखो कि शरीर के सभी अंग विश्रांत हो जाएं . और चेहरे की मांश-पेशियों पर विशेष ध्यान दो , क्योंकि वे तुम्हारे नब्बे प्रतिशत तनावों को ढोती हैं , बाक़ी शरीर में केवल दस प्रतिशत तनाव हैं . सब तनाव तुम्हारे मस्तिष्क में होते हैं , इसलिए तुम्हारा चेहरा उनका भण्डार बन जाता है . तो अपने चेहरे पर जितना तनाव डाल सको डालो , शरमाओं मत . चेहरे को पूरी तरह से संतापयुक्त , विषादयुक्त बना डालो , और फिर अचानक ढीला छोड़ दो . पांच मिनट के लिए ऐसा करो , ताकि तुम्हारे शरीर का हर अंग विश्रांत हो जाए . यह तुम्हारे लिए बड़ी सरल मुद्रा है . तुम इसे बैठकर , या बिस्तर में लेटे हुए , या जैसे भी तुम्हें आसान लगे कर सकते हो .


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