• Recent

    विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 54

    ["हे कमलाक्षी , हे सुभगे , गाते हुए , देखते हुए , स्वाद लेते हुए यह बोध बना रहे कि मैं हूं , और शाश्वत आविर्भूत होता है ."]


            यह विधि कहती है कि कुछ भी करते हुए-- गाते हुए , देखते हुए , स्वाद लेते हुए-- यह बोध बना रहे कि मैं हूं , और शाश्वत को आविर्भूत कर लो . अपने भीतर उसे आविष्कृत कर लो जो सतत प्रवाह है , ऊर्जा है , जीवन है , शाश्वत है . यह बहुत कठिन होगा . यह सरल मालूम होता है , लेकिन तुम भूल-भूल जाओगे . तीन या चार सेकेंड के लिए भी तुम अपना स्मरण नहीं रख सकते . तुम्हें लगेगा कि मैं अपना स्मरण कर रहा हूं और अचानक तुम किसी दूसरे विचार में चले गए . अगर यह विचार भी उठा कि ठीक , मैं तो अपना स्मरण कर रहा हूं तो तुम चूक गए , क्योंकि यह विचार आत्म-स्मरण नहीं है . आत्म-स्मरण में कोई विचार नहीं होगा , तुम बिलकुल रिक्त और खाली होगे . और आत्म-स्मरण कोई मानसिक प्रक्रिया नहीं है . ऐसा नहीं है कि तुम कहते रहो कि हां , मैं हूं . यह कहते ही कि हां , मैं हूं , तुम चूक गए . मैं हूं , यह सोचना एक मानसिक कृत्य है . यह अनुभव करो कि मैं हूं . मैं हूं , इन शब्दों को नहीं अनुभव करना है . उसे शब्द मत दो , बस अनुभव करो कि मैं उन . सोचो मत , अनुभव करो .

          प्रयोग करो . कठिन है , लेकिन अगर तुम प्रयोग में लगन से लगे रहे तो यह घटित होता है . टहलते हुए स्मरण रखो कि मैं हूं , अपने होने को महसूस करो . ऐसे किसी विचार या धारणा को नहीं लाना है , बस महसूस करना है . मैं तुम्हारा हाथ छूता हूं , या तुम्हारे सिर पर अपना हाथ रखता हूं , तो उसे शब्द मत दो , सिर्फ स्पर्श को अनुभव करो . और इस अनुभव में स्पर्श को ही नहीं , स्पर्शित को भी अनुभव करो . तब तुम्हारी चेतना के तीर में दो फलक होंगे . तुम वृक्षों की छाया में टहल रहे हो ; वृक्ष हैं , हवा है , उगता हुआ सूरज है . यह है तुम्हारे चारों ओर का संसार और तुम उसके प्रति सजग हो . घुमते हुए क्षणभर के लिए ठिठक जाओ और अचानक स्मरण करो कि मैं हूं , अपने होने को अनुभव करो . कोई शब्द मत दो , सिर्फ अनुभव करो कि मैं हूं . यह शब्दहीन अनुभूति , क्षण मात्र के लिए ही सही , तुम्हें सत्य की वह झलक दे जायेगी जो कोई एल .एस .डी नहीं दे सकती . क्षणभर के लिए तुम अपने अस्तित्व के केन्द्र पर फेंक दिए जाते हो . तब तुम दर्पण के पीछे हो , तुम प्रतिबिंबों के जगत के पार चले गए हो . तब तुम अस्तित्वगत हो .


    Page - प्रस्तावना 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25
    26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50
    51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75
    76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100
    101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112