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    सिद्धार्थ उपनिषद Page 07

                                         *****( साधना - सूत्र  )*****

                        
       

    सिद्धार्थ उपनिषद Page 07

       

    (37)


    हमारी लिविंग ऑब्जेक्टिव है.हम देह या प्रोफेशन से तादात्म्य बनाकर जीते हैं.यही  हमारे दुःख का कारण है.यही  हमारी अशांति का कारण है.

    (38)


    सब्जेक्टिव तल पर ही हम सहज हो सकते हैं.निराकार से तादात्म्य बनाकर ही हम शांत हो सकते हैं.मनुष्य के लिए यही सबसे बड़ी चुनौती है.

    (39)


    सब्जेक्टिव लिविंग साक्षी है.आत्म स्मरण साक्षी है.निराकार से तादात्म्य बनाकर संसार में जीने का मजा लेना साक्षी है.साक्षी का एक पैर भीतर परमात्मा में है,और दूसरा पैर बाहर संसार में है.साक्षी का तादात्म्य निराकार से है,और भ्रमण संसार में है.साक्षीत्व ही संतत्व है.राजस्थान के दरिया साहेब कहते हैं--'जात हमारी ब्रह्म है,माता पिता हैं राम. गिरह हमारी सुन्न में,अनहद में बिसराम.'

    (40)


    अपने घर कि खिड़की से बाहर का आकाश देखना तो ठीक है,मगर मकान के बाहर डेरा डाले रहना अथवा बाहर रहकर अपने मकान के भीतर कभी-कभी झांकते रहने में क्या बुद्धिमानी है ? जिस तरह मकान के मालिक को मकान के भीतर रहकर विश्राम करना शोभा देता है,वैसे ही संत अपने निराकार में रहकर विश्राम करने का मजा लेता है.

    (41)


    सभ्यताओं में टकराव होता है,संस्कृतियों में टकराव होता है,अध्यात्म में टकराव नहीं होता.
       'सबे सयाने एक मत सबकी एक ही जात.जिन पहुंचे ते कह गए,सबकी एक ही बात..'
     पंडितों और आलिमों कि जगह संतों और फकीरों के चरणों में बैठकर धर्म और मजहब कि सच्चाई समझने का वक्त आ गया है.


    (42)


    सिद्धि के लिए साधना क्यों ? आखिर सिद्धि क्या दे देगी ? क्या धन देगी ? उसके लिए तो नौकरी और व्यापार काफी है,क्या शक्ति देगी ? उसके लिए तो पद काफी है. कोई भी सिद्धि शान्ति नहीं दे सकती,मुक्ति नहीं दे सकती. शान्ति और मुक्ति तो साक्षी से मिलती है,ध्यान से मिलती है,समाधि से मिलती है,सुमिरन से मिलती है.


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