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    सिद्धार्थ उपनिषद Page 162

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    धर्म संकट में क्या करें ?

    भगवान राम का अपयश होने लगा . धोबी ने शिकायत कर दी कि साल भर रावण के यहां सीता रहीं थी और इन्होंने फिर भी रख लिया . बड़ी शिकायत होने लगी . तो एक तरफ अब यश प्रभावित हो रहा था और दूसरी तरफ परिवार . एक राजा को राज्य करने के लिए जरूरी है कि वह यशस्वी हो . अगर उसका यश नहीं है तो वह राज्य नहीं कर सकता . सब कुछ जानते हुए कि सीता माता पवित्र हैं ; लेकिन लोकहित के लिए उन्होंने परिवार के हित को छोड़ दिया . और यश को चुन लिया .
     
    कृष्ण और भीष्म पितामह : भीष्म पितामह ने व्रत लिया था कि जो इस कुर्सी पर बैठेगा मैं उसकी तरफ से लडूंगा . और दुर्योधन बैठ गया . दूसरी तरफ कृष्ण ने भी व्रत लिया था कि मैं महाभारत में शस्त्र नहीं उठाऊंगा . लेकिन एक दिन धर्म संकट पड़ गया . भीष्म के सामने भी धर्म संकट था कि वे दुर्योधन जैसे अधर्मी की तरफ से लडें कि पांडवों जैसे धर्मी की तरफ से लडें .और उन्होंने अधर्म को चुन लिया . क्योंकि वचन को उन्होंने ज्यादा मूल्य दे दिया , सत्य और न्याय से . गलत निर्णय था . सत्य और न्याय सातवें तल का मानवीय गुण है . और वचन पालन छटवें तल का है .

    लेकिन कृष्ण ने भी वचन दिया था : लेकिन जब भीष्म ने संहार करना शुरू कर दिया तो उन्होंने चक्र-सुदर्शन उठा लिया . भीष्म ने कहा ये क्या कर रहे हो , तुमने तो वचन दिया था . कृष्ण ने कहा मैं तुम्हारे जैसा मूर्ख नहीं .यहां सत्य और न्याय घायल हो रहा है . मैं  वचन देखूं कि सत्य और न्याय देखूं . कृष्ण का निर्णय बिलकुल सही था .

    तो जब भी धर्म संकट हो उच्च (higher) मानवीय गुण को चुन लेना चाहिए और निम्न (lower) मानवीय गुण को छोड़ देना चाहिए .


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