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    सिद्धार्थ उपनिषद Page 63

             

    सिद्धार्थ उपनिषद Page 63


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    संस्कृति रक्षक है आध्यात्म की. लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है, रक्षक ही भक्षक हो जाता है. कबीर साहब कहते हैं - ' कबीरदास की उलटी बानी देखत हम चकराए, बाड़ा खेत को खाए.'
    बाड़ा खेत को खा रहा है. कभी-कभी ऐसा हो जाता है, कि संस्कृति आध्यात्म को खा जाती है. कभी-कभी पंडित संतों के विरोधी हो जाते हैं, कभी-कभी मौलवी फकीरों के विरोधी हो जाते हैं. बहुत बार हो गए हैं - सम्श तबरेज की खाल खींच दी थी, मंसूर को तुम जानते हों पत्थर से मारा था, जीसस को सूली दे दी थी, सुकरात, मीरा को जहर दे दिया गया. और जहर देने वाले कौन थे ? जहर देने वाले वे लोग थे, जो समाज के ठेकेदार थे.
    कबीर साहब ठीक कहते हैं, कि कभी बागुड़ खेत को खाने लगता है. लेकिन फिर भी वह रक्षक ही है, लगाते तो रक्षा के लिए ही हैं.  इसकी जरूरत है. अब सड़क पर एक्सीडेंट हो जाता है तो तुम सड़क पर चलना तो बंद नहीं करोगे. ऐसे ही कभी -कभी बागुड़ खेत को खा जाता है, तो तुम बागुड़ लगाना बंद तो नहीं करोगे. बागुड़ की भी जरुरत है.

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    ऐसे भी धर्म की यात्रा संस्कृति से शुरू होती है, आध्यात्म से नहीं. आध्यात्म तो आगे की अवस्था है. हम हिंदू धर्म में पैदा हुए तो मंदिर से यात्रा शुरू करेंगे, इस्लाम धर्म में पैदा हुए तो मस्जिद से शुरू करेंगे, ईसाई धर्म में पैदा हुए तो चर्च से शुरू करेंगे, सिक्ख धर्म में पैदा हुए तो गुरुद्वारे से शुरू करेगे. तो पहला कदम तो संस्कृति से ही उठेगा.
    मलूकदास कहते हैं - " पहला पद है देयी-देवा " पहला कदम देवी-देवताओं की पूजा से शुरू होता है. माँ-बाप, समाज को जैसा हम देखते हैं, वैसे हम शुरू करते हैं.
    " दूजा पद है नेम-आचार " दूसरा कदम- नियम है, व्रत है, आचार है.
    " तीजा पद में सब जग उलझा, चौथा अपरम्पार. " तीजा पद क्या है ? सदाचार. सदाचार का पालन करो. नैतिकता (morality). नैतिकता का इतना बड़ा बागुड़ है, कि उसमे सब फंस जाते हैं. सदाचार का इतना ज्यादा ख्याल है कि संस्कृति में सारे उलझ जाते हैं. सारे उपदेशक कहते हैं - सदाचारी बनो, झूठ मत बोलो, पाप मत करो, पुण्य करो. 
    यह अच्छी बात है. लेकिन यह तीसरा ही कदम है, आध्यात्म से इसका कोई लेना-देना नहीं है.
     " चौथा अपरम्पार ", यह चौथा कदम ही आध्यात्म है.

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    चीनी कहावत हैकि १०० चलते हैं तो कोई एक पहुँचता है. क्योंकि १०० में ९९ रुक जाते हैं संस्कृति (पूजा है, पाठ है, व्रत है, नियम है, सदाचार है) पर. कोई एक आध्यात्म के मार्ग पर कदम उठता है.


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