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    सिद्धार्थ उपनिषद Page 23

                            

    सिद्धार्थ उपनिषद Page 23                     


     (101)


    सुमिरन के सात सोपान हैं - गुरु भक्ति, सहजता, गहरी सांस, नाद का श्रवण, नाद के स्रोत और उसका  स्मरण  और मन्त्र. सुमिरन में जब तक सातों आयाम संयुक्त न हों, समझना सुमिरन में कुछ भूल-चूक हो रही है.

    (102) 


    गुरु भक्ति का अर्थ है गुरु के प्रति अहोभाव में जीना. कभी अहोभाव में कमी आए, तो चिंतन करना कि गुरु से जुड़ने से पहले तुम्हारी जिंदगी क्या थी ? गुरु से जुड़ने के बाद तुम्हारी जिंदगी क्या है, और अभी और क्या संभावना है. अतीत में जो संत हुए, उनकी जिंदगी गुरु से जुड़ने के पहले क्या थी और गुरु से जुड़ने के बाद उनकी जिंदगी क्या हो गयी !

    (103)


    ज्ञान और भक्ति दो अलग-अलग मार्ग नहीं है. दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं. ज्ञान आध्यात्मिक यात्रा का पूर्वार्द्ध है और भक्ति उसका उत्तरार्द्ध . ज्ञान परमात्मा के मंदिर का सोपान है और भक्ति उसका गर्भगृह. बिना ज्ञान के भक्ति अंधी है. बिना भक्ति के ज्ञान लंगड़ा है. ज्ञान झील की तरह है. भक्ति नदी की तरह है.

    (104)


    आध्यात्मिक यात्रा का उद्देश्य परम गति है, परमपद है, परम विश्राम है, जो एक ऐसी अवस्था है, जहाँ समय की कोई कमी नहीं है, कोई भाग-दौड़ नहीं है, कोई कामना नहीं है, कोई चिंता नहीं है, एक सदानंद की अवस्था है. इसके आगे गोविन्द्पद है, अर्थात एक ऐसी स्थिति जिसमें विष्णु को लेते हुए विश्राम की मुद्रा में दर्शाया जाता है. इसे कृष्णपद भी कहा जाता है, अर्थात एक ऐसी स्थिति जिसमें भगवान कृष्ण को चैन से बाँसुरी बजाते दिखाया जाता है.


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