सिद्धार्थ उपनिषद Page 37
सिद्धार्थ उपनिषद Page 37
(145)
दुःख के तीन रूप हैं- शोक, कष्ट और चिंता. शोक का सम्बन्ध अतीत से है. कष्ट का सम्बन्ध वर्तमान से है. चिंता का सम्बन्ध भविष्य से है. शोक से मुक्त होने का एक ही उपाय है- अतीत की घटनाओं से सबक लें और शोक से मुक्त हो जाएं. कष्ट से मुक्त होने का उपाय है कि हम समुचित पुरुषार्थ करें और कष्ट से मुक्त हो जाएं. चिंता से मुक्त होने का उपाय है कि हम अस्तित्व की मंगलमयता पर श्रद्धा करें और चिंता से मुक्त हो जाएं.
(146)
सृष्टि के संचालन मवं मुख्यतः तीन शक्तियों की भूमिका है- परमात्मा,त्रिदेव और देवता. परमात्मा सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान, सृष्टि का कारण और कर्ता है. त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु और शिव मुख्य हैं, जो क्रमशः सृजन लोक (ब्रह्मलोक), संतलोक(बैकुंठ, विष्णुलोक) और मृतात्मा लोक (शिवलोक) के प्रभारी हैं. उनकी सहायता के लिए कई देवता हैं, जिनमें ५ मुख्य हैं- गणेश, वरुण, अग्निदेव, वायुदेव और इन्द्रदेव जो क्रमशः पृथ्वीमंडल, जलमंडल, जीवमंडल, वायुमंडल एवं आकाशमंडल के प्रभारी हैं. 'धूनी चिकित्सा' में इन तीनों शक्तियों का सहयोग प्राप्त किया जाता है.
(147)
सोते समय घटाकाश की साधना खतरनाक है. जैसे प्रकाशित कमरें में नींद नहीं आती, ऐसे ही दिव्य आलोक का ध्यान करने पर नींद नहीं आती. जो मित्र इस प्रकार अनिद्रा के शिकार हो गए हैं, उन्हें सोते समय अपने शरीर का तथा सांसों के साथ पेट के फैलने और सिकुड़ने पर ध्यान देना चाहिए.