सिद्धार्थ उपनिषद Page 36
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जिंदगी का केन्द्र उमंग बनाओ, आनंद नहीं. उमंग के पीछे आनंद ऐसे ही आ जाता है, जैसे गुरु के पीछे गोविन्द आ जाता है. जो गोविन्द को खोजने जाते हैं, वे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा या चर्च पहुँच जाते हैं, और परमात्मा से चूक जाते हैं. फिर तमाम उपद्रव शुरू हो जाते हैं. ऐसे ही जो आनंद खोजने जाता है, उसके जीवन में अशांति आती है, दुःख आता है. जो गुरु खोजता है, वह परमात्मा पा जाता है, साथ ही उसके जीवन में शान्ति और आनंद घनीभूत हो जाता है.
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'पति, पत्नी और वो' आज के विश्व की एक बड़ी समस्या है. एक अनुमान के अनुसार यह समस्या ५० प्रतिशत आत्महत्या का कारण है. विश्व की एक बड़ी आबादी इस समस्या से ग्रस्त है. बहुत कम लोग जानते हैं कि जीवन में 'उमंग' की कमी हमें 'वो' की तलाश में ले जाती है. ओशोधारा में 'उमंग प्रज्ञा' कार्यक्रम आरम्भ करने का यह भी एक कारण है. प्रकृति से जुडकर हम सदा उमंग में जी सकते हैं. एतत द्वारा न केवल हम सदानंद में जीएंगे , बल्कि इस समस्या से भी बच जाएँगे.
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उमंग और तृष्णा में भेद है. तृष्णा का सम्बन्ध कामना से है, जबकि उमंग का सम्बन्ध भावना से है. तृष्णा का सम्बन्ध फल से है, जबकि उमंग का सम्बन्ध कर्म से है. तृष्णा का सम्बन्ध संग्रह से है, जबकि उमंग का सम्बन्ध अपरिग्रह से है. तृष्णा का सम्बन्ध संसार से है, जबकि उमंग का सम्बन्ध प्रकृति से है.