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    सिद्धार्थ उपनिषद Page 145

    सिद्धार्थ उपनिषद Page 145

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    ओशोधारा का क्या मार्ग है - तुमने पूछा नहीं..चलो बता देते हैं- संवृत्ति मार्ग !
    अर्थात इसमे निवृत्ति भी है- और प्रवृत्ति भी है.
    तो इसलिए मन्त्र की इसमें बड़ी उपयोगिता है.
    हाँ जैसे साधना ऊँचाइया छूती है मन्त्र में बदलाव आता है- मन्त्र साधना को दिशा देता है.
    मन की साधना में मन्त्र मूल्यवान नहीं है- भक्ति की साधना में मन्त्र बहुत मूल्यवान है.
    इसलिए जैसे जैसे तुम आगे बढ़ रहे हो- बहुत सारे मित्र हैं जो २४ तल पर २५ तल पर आ गये हैं और अब बिलकुल परम पद सामने दिखलाई दे रहा है चरैवेति सामने है तो मन्त्र को मजबूत करलो.
    हर सांस में जो भी मन्त्र है तुम्हारा उस मन्त्र को साधो..और जब मन्त्र साध लोगे तो मन्त्र तुम्हारे मन को पकड़े रहेगा- इधर-उधर हिलने नहीं देगा.
    जैसे हाथी जब पागल हो जाता है तब ऊंट बुलाया जाता है- ये मन जो है ये पागल हाथी की तरह है- और मन्त्र ऊंट की तरह है. जब मन्त्र सध जाएगा तो सांस-सांस में मन्त्र गूंजेगा. फिर तुम्हे सुमिरन करना नही पड़ेगा. फिर सुमिरन अविराम गति से होता रहेगा.
    तब वो स्थिति पैदा होगी-
    माला जपी न कर जपी.. जिह्वा जपी न राम.
    सुमिरन मेरा हरी करे.. मैं पाया विश्राम !!
    तुम सब संवृत्ति आर्ग पर अग्रसर हो ...... इसलिए मैंने गुरु पूणिमा के इस अवसर को चुना की तुम्हे मन्त्र का मूल्य बताये..
    तुम्हारा जीवन मंत्रमय हो जाय
    तुम्हारा मन मित्र हो जाय
    हरी ॐ तत्सत !


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