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    संकल्पना और ओशो


    visualisation से सम्बंधित परमसद्गुरु प्यारे ओशो के अमृत"वचन


    आदर्श को चुन'ने में कभी कंजूसी मत करना. वह तो ऊंचा से ऊंचा होना चाहिए. वस्तुतः तो परमात्मा से नीचे जो हो वह आदर्श ही नहीं'ं है. आदर्श उसकी भविष्यवाणी,जो कि अंततः तुम करके दिखा दोगे. वह तुम्हारे स्वरुप की परम अभिव्यक्ति की घोषणा है.

    सुबह से सांझ बहुत लोग मेरे पास आते हैं,उनसे मै पोंछता हूँ की तुम्हारे प्राण कहा'ं है'न?. एक"एक वे समझ नहीं'न पाते. फिर, मै उनसे कहता हूँ'न कि प्रत्येक के प्राण उसके जीवन आदर्श में होते हैं. वह जो होना चाहता है, जो पाना चाहता है, उसमे ही उसके प्राण होते हैं. और जो- कुछ भी नहीं'न होना चाहता, कुछ भी नहीं'न पाना चाहता,वाही निष्प्राण है. यह हमारे हांथो'ं में है की हम अपने प्राण कहा'न रखे

    जो जितनी ऊँचाइयों या नीचाइयों पर उन्हें रखता है,उतनी ही ऊर्ध्वमुखी उसकी जीवन"धरा हो जाती है. प्राण जहाँ होते है, आँखें वहीँ लगी रहती है,और श्वांस-प्र'स्वांस में स्मृति उसी और दोड़ती रहती है. और,स्मृति जिस दिशा में दोड़ती है,क्रमशः विचार उसी पथ पर बीजारोपित होने लगते है. विचार आचार के बीज हैं. आज जो विचार है, कल वह अनुकूल अवसर पाकर,अंकुरित हो,आचार बन जाता है इसलिए,जीवन में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है--अपने प्राणों को रखने के लिए सम्यक िस्थल चुनना.

    जो इस चुनाव के बिना चलते हैं,वे उन नाओं की भाँती हैं,जो सागर में छोड़ दी गई हैं लेकिन जिन्हें गन्तव्य का कोई बोध नहीं.ऐसी नावें निकलने के पहले ही डूबी समझी जानी चाहिए'न जो अविवेक और प्रमाद में बहते रहते है, उनके प्राण उनकी दैहिक वासनाओं में ही केंद्रित हो जाते हैं ऐसे मनुष्य, शरीर के ऊपर और किसी सत्य से परिचित नहीं हो पाते वे उस परम"निधि से वंचित ही रह जाते हैं, जो की उनके ही भीतर छिपी हुई थी

    अविवेक और प्रमाद से जागकर आँखें खोलो और उन हिमाच्छादित जीवन शिखरों को देखो, जो की सूर्य के प्रकाश में चमक रहे हैं और तुम्हें अपनी और बुला रहे हैं! यदि तुम अपने हृदय में उन तक पहुँचने की आकांक्षा को जन्म दे सको, तो वे जरा भी दूर नहीं हैं