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    सम्मोहन का प्रयोग

    सम्मोहन का प्रयोग

    सम्मोहन का प्रयोग

    इस ग्राहकता के सम्बन्ध में एक आखिरी बात आपसे कहूं. . मॉस्को यूनिवर्सिटी में 1966 तक एक अद्भुत व्यक्ति था :डॉ. वार्सिलिएव.. वह ग्राहकता पर प्रयोग कर रहा था."माइंड की रेसेप्टिवित्य", मन की ग्राहकता कितनी हो सकती है. . करीब-करीब ेऐसा हाल है जैसे कि एक बड़ा भवन हो और हमने उसमें एक छोटा-सा छेड़ कर रखा हो, और उसी छेद से हम बाहर के जगत को देखते है'न. . यह भी हो सकता है कि भवन की साडी दीवारें गिरा दे जाएं और हम खुले आकाश के नीचे समस्त रूप से ग्रहण करने वाले हो जाएं.वार्सिलिएव ने एक बहुत हैरानी का प्रयोग किया -- और पहली दफा. . उस तरह के बहुत से प्रयोग पूरब में-- विशेष कर भारत में, और सर्वाधिक विशेष कर "महावीर"ने किये थे.लेकिन उनका "डायमेंशन", उनका आयाम अलग था


    सम्मोहन का प्रयोग
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    "महावीर" ने जाती- स्मरण के प्रयोग किये थे कि प्रत्येक व्यक्ति को अगर ठीक यात्रा करनी हो तो उसे अपने पिछले जन्मों को स्मरण और याद कर लेना चाहिए.उसको पिछले जन्म याद आ जायें तो आगे की यात्रा आसान हो जाये. . लेकिन वार्सिलिएव ने एक अनूठा प्रयोग किया. उस प्रयोग को वे कहते है:"आर्टिफीसियल रेंकनाशन". "Artificial Reincarnation", कृत्रिम पुनर्जन्म या कृत्रिम पुनरुज्जीवन-- यह क्या है? . वार्सिलिएव और उसके साथी एक व्यक्ति को बेहोश करेंगे, 30 दिन तक निरन्तर सम्मोहित करके उसको गहरी बेहोशी में ले जायेंगे, और जब वह गहरी बेहोशी में आने लगेगा, और अब यह यन्त्र हैं--इ.इ.ग. नाम का यन्त्र है, जिस'से जांच की जा सकती है की नींद की कितनी गहराई है.

    अल्फ़ा नाम की वेव्स पैदा होनी शुरू हो जाती है, जब व्यक्ति चेतन मन से गिरकर अवचेतन में चला जाता है. तो यन्त्र पर, जैसे की कार्डिओग्राम पर ग्राफ बन जाता है, ऐसा े.इ.ग. भी ग्राफ़ बना देता है, की यह व्यक्ति अब सपना देख रहा है, अब सपने भी बंद हो गए,अब यह नींद में है, अब यह गहरी नींद में है, अब यह अटल गहराई में डूब गया. जैसे ही कोई व्यक्ति अतल गहराई में डूब जाता है, उसे सुझाव देता था वार्सिलिएव. समझ लें की वह चित्रकार है, छोटा-मोटा.चित्रकार है, या चित्रकला का विद्द्यार्थी है, तो वार्सिलिएव उसको समझायेगा की तू "मिचेल एंगेलो"है, पिछले जन्म का, या "वानगाग" है.या कवी है तो समझायेगा की तू "शेक्सपियर" है, या कोई और.और 30 दिन तक निरन्तर गहरी अल्फ़ा वेव्स की हालत में उसको सुझाव दिया जायेगा कि वह कोई और है, पिछले जन्म का.30 दिन में इसका चित्त इसको ग्रहण कर लेगा.

    सम्मोहन का प्रयोग

    30 दिन के बाद बड़ी हैरानी के अनुभव हुए, की वह व्यक्ति जो साधारण सा चित्रकार था, जब उसे भीतर भरोसा हो गया कि मैं "Michel Angelo" हु तब वह विशेष चित्रकार हो गया-- तत्काल.वह साधारण सा तुकबंद था, जब उसे भरोसा हो गया कि मैं "शेक्सपियर" हो तो "शेक्सपियर" की हैसियत की कवितायेँ उस व्यक्ति से पैदा होने लगी'न. . हुआ क्या? वार्सिलिएव तो कहता था-- यह "आर्टिफीसियल रेंकर्नाटिओं" है. वार्सिलिएव कहता था की हमारा चिट्टा {अवचेतन[सबकॉन्सियस]} तो बहुत बड़ी चीज है.छोटी सी खिड़की [चेतन{क्योंकिओस मंद}] खुली है, जो ह्यूमेन आपने को समझ रखा है की हम यह हैं, उतना ही खुला है, उसी को मानकर हम जीते हैं. अगर हमें भरोसा दिया जाये की हम और बड़े हैं, तो खिड़की बड़ी हो जाती है. हमारी चेतना उतना काम करने लगती है.

    वार्सिलिएव का कहना है कि आने वाले भविस्य में हम "गेनियस" निर्मित कर सकेंगे. कोई कारन नहीं है की गेनियस पयेडा ही न हो'न. सभी बच्चे जीनियस की तरह पैदा होते हैं. कुछ तो हमारी तरकीबो'ं से बच जाते है वह गेनियस बन जाते हैं, बाकि नस्ट जाते हैं वार्सिलिएव का कहना है-- असली सूत्र है "रेसेप्टिवित्य". इतना ग्राहक हो जाना चाहिए चित्त [अवचेतन{सबकॉन्सियस}] की जो उसे कहा जाये, वह उसके भीतर गहनता में प्रवेश कर जाए..