• Recent

    ओशो का जीवन परिचय



    ओशो का जीवन परिचय



    ओशो (Osho), जिनका असली नाम भगवान श्री रजनीश चन्द्र मोहन (Bhagwan Shri Rajneesh Chandra Mohan) था, एक अद्वैत मार्गी, आध्यात्मिक गुरु और ध्यान शिक्षक थे। वे 11 दिसंबर 1931 को मध्य प्रदेश, भारत में जन्मे और 19 जनवरी 1990 को मृत्यु हो गई। उन्होंने अपने जीवन के दौरान विभिन्न विषयों पर अपने विचारों को व्यक्त किया, जिनमें सम्पूर्णता, प्रेम, स्वतंत्रता, और बोधिचित्त के महत्वपूर्ण तत्व शामिल हैं। उनका ध्यान मुख्य रूप से जगत के धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, और मनोवैज्ञानिक मुद्दों पर था।

    ओशो का जन्म मध्य प्रदेश राज्य के एक छोटे से गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम नवल जैन था और माता का नाम सरला जैन था। उनका विद्यालयी शिक्षा पूरा होने के बाद, उन्होंने देवसागर नगर के सेंट्रल विध्यालय, ग्वालियर में अध्ययन किया। यहां पर्यावरण और विज्ञान में उनकी रुचि थी और वे विशेष रूप से नाटक और गीत गान में भी रुचि रखते थे।


    ओशो की विचारधारा अद्वैत (नैतिक सहयोग का मतलब वेदान्त में है) और तांत्रिक (जीवन के साथ पूर्णता की खोज) दर्शनों पर आधारित थी। उन्होंने विभिन्न विचारों के माध्यम से मनुष्य के अस्तित्व, प्रेम, सम्पूर्णता, और मुक्ति के महत्व को समझाने का प्रयास किया। ओशो का मत कहता है कि हम सभी एकत्र होकर अपने असली स्वभाव को खोजें और अपने आप को स्वतंत्रता, प्रेम, और ज्ञान के साथ जीने का अवसर प्राप्त करें।

    ओशो का उपदेश अत्यंत व्यापक और संयोजक है। उनके विचारों के अनुसार, जीवन की खोज में मनुष्य को अपने आप को छोड़ना चाहिए और आत्मसमर्पण के माध्यम से सच्ची खोज करनी चाहिए। उन्होंने बताया कि मनुष्य को अपने स्वभाव के साथ स्वीकार करना चाहिए, जिसमें उसकी प्रतिभा, प्रेम, और विचारशीलता समाहित होती है। उन्होंने शिष्यों को ध्यान की प्रक्रिया में मार्गदर्शन किया, जो उनके अनुयायों को अपने अस्तित्व की उच्चता तक पहुंचने में मदद करता है।

    ओशो के जीवन के दौरान, उन्होंने ध्यान के विभिन्न प्राक्रियाओं का अभ्यास किया और संतों, जैन आचार्यों, बौद्ध ब्रह्मचारियों, और योगियों के साथ अध्ययन किया। इसके बाद, उन्होंने अपनी खुद की प्रणाली और अद्वैत तत्त्व के आधार पर अपने ध्यान शिविर और सत्संगों का आयोजन किया। ये आयोजन भारत के अलावा अन्य देशों में भी हुए और लोगों को ध्यान, प्रेम, और ज्ञान की प्राप्ति का मार्ग प्रदान किया।

    ओशो के विचारों के माध्यम से, वे मनुष्यों को प्रेम, स्वतंत्रता, और बोधिचित्त की महत्वपूर्णता को समझाते हैं। उन्होंने कहा कि प्रेम मनुष्य के अस्तित्व का आधार है, और अपने आप को प्रेम के साथ जोड़ने के माध्यम से हम सच्ची खुशी प्राप्त कर सकते हैं। स्वतंत्रता की बात करते हुए, उन्होंने अपने अनुयायों को आत्मनिर्भरता, स्वाधीनता, और स्वतंत्र मानसिकता की प्राप्ति के लिए प्रेरित किया। और बोधिचित्त के महत्व को लेकर, उन्होंने बताया कि चेतना की स्थिति में अपने अंदर की सभी चीजों को अनुभव करने से हम सम्पूर्णता और आनंद की अनुभूति कर सकते हैं।

    ओशो के जीवन के अंतिम दिनों में, उन्होंने अपने अनुयायों को अपनी संगठनिक परियोजना, रजनीश पुरम (Rajneesh Puram) और उसके न्यायिक समस्याओं, और धार्मिक विवादों के साथ छोड़कर विराम लिया। उनकी मृत्यु के बाद, ओशो की प्रभावशाली विचारधारा और ध्यान प्राक्रियाएं उनके अनुयायों और आगामी पीढ़ियों द्वारा जारी रखी गई हैं। आज भी, ओशो के शिष्यों की संख्या वृद्धि कर रही है और उनकी प्रभावशाली उपदेशों का प्रचार पूरी दुनिया में हो रहा है।